26) इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण के लिए प्रस्तावित प्रक्रिया

इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण के लिए प्रस्तावित प्रक्रिया :

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Proposed Notification to revise history Text books

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इतिहास के लेखन के साथ समस्या यह है कि जो भी व्यक्ति इसे लिखता है, वह जाने अनजाने अपना आशय एवं दृष्टिकोण इसमें समाहित कर देता है। और इस वजह से इतिहास की पाठ्यपुस्तकें कभी भी निष्पक्ष नहीं होती। इसमें उस राजनैतिक दल की विचारधारा का मिश्रण हो जाता है, जो दल इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के लेखको की नियुक्ति करता है। कोई अपवाद नहीं !! यह प्रस्तावित कानून पाठ्यपुस्तकों में सही इतिहास लिखने की प्रक्रिया देता है। प्रधानमंत्री हस्ताक्षर करके इस कानून को गेजेट में छाप सकते है, इसके लिए संसद की अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

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यदि आप इस क़ानून का समर्थन करते है तो पीएम को पोस्टकार्ड भेजे। पोस्टकार्ड में यह लिखें –

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प्रधानमन्त्री जी, इतिहास की पाठयपुस्तको के पुनरीक्षण का क़ानून गेजेट में छापें - #HistoryRevise , #Rrp26

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टिप्पणियाँ इस कानून का हिस्सा नहीं है। नागरिक एवं अन्य अधिकारी टिप्पणियों का इस्तेमाल दिशा निर्देशों के लिए कर सकते है । टिप्पणियाँ किसी भी मंत्री, अधिकारी या जज आदि पर बाध्यकारी नहीं है।

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सैक्शन – A

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कमेटियों का गठन :

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(01) पाठ्यपुस्तको के पुनरीक्षण के लिए केन्द्रीय कमेटी : शिक्षा मंत्री केन्द्रीय स्तर पर इतिहासकारों की एक कमेटी बनाएगा। शिक्षा मंत्री इस कमेटी के अध्यक्ष एवं इसके सदस्यों की नियुक्ति अपनी पसंद से करेगा। इस कमेटी को केन्द्रीय पुनरीक्षण कमेटी कहा जायेगा।

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(1.1) अध्यक्ष का कार्यकाल 1 वर्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष होगा।

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(1.2) शिक्षा मंत्री तय करेगा कि इस कमेटी का आकार क्या होगा, तथा सदस्यों एवं अध्यक्ष को मासिक / वार्षिक / प्रति उपस्थिति कितना भुगतान किया जायेगा।

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(1.3) यदि इस कमेटी के अध्यक्ष या सदस्यों के खिलाफ पक्षपात आदि की कोई शिकायत आती है, तो मामले की सुनवाई इतिहासकारों की जूरी करेगी। जूरी का चयन इतिहासकारों की सूची से लॉटरी द्वारा किया जाएगा। (धारा 5 देखें)

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(1.4) यह कमेटी तब तक निरंतर कार्य करेगी जब तक पुनरीक्षण का कार्य पूरा नहीं हो जाता।

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(02) पाठ्यपुस्तको के पुनरीक्षण के लिए राज्य कमेटी : राज्यों के शिक्षा मंत्री भी अपने अपने राज्यों में इसी तरह की कमेटी बनायेंगे। इन कमेटियो को राज्य पुनरीक्षण कमेटी कहा जायेगा।

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(03) संसदीय पुनरीक्षण समिती : शिक्षा मंत्री केन्द्रीय कमेटी बनाने के लिए स्पीकर से कहेगा कि, वे अपनी पार्टी के सांसदों को मिले वोटो के अनुसार अपना प्रतिनिधि भेजें। मान लीजिये कि पार्टी X को लोकसभा में 10% वोट मिले है, तो उसके 10 सांसद कमेटी में जायेंगे। यदि किसी रजिस्टर्ड एवं गैर मान्यता प्राप्त पार्टी के प्रत्याशी या निर्दलीय प्रत्याशी ने सांसद के चुनाव में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है तो ऐसे गैर सांसदों को भी इस कमेटी में सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा।

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(3.1) गैर सांसद सदस्यों को प्रति उपस्थिति भुगतान एवं यात्रा भत्ते आदि दिए जायेंगे।

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(3.2) पार्टी चाहे तो सांसद की जगह पर अपने किसी अन्य प्रतिनिधि जैसे इतिहासकार आदि को भी कमेटी में भेज सकती है।

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(3.3) सदस्य का कार्यकाल 2 वर्ष होगा, और 2 वर्ष बाद वह अपने आप कमेटी से बाहर हो जाएगा। पार्टी चाहे तो उसे फिर से नियुक्त कर सकती है, या अन्य किसी सांसद को भेज सकती है। किन्तु किसी भी सांसद को 3 बार से अधिक नियुक्त नहीं किया जा सकेगा।

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(3.4) गैर सांसद सदस्य का की सदस्यता तब तक जारी रहेगी, जब तक कि अमुक लोकसभा का कार्यकाल समाप्त नहीं हो जाता।

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(04) विधानसभा पुनरीक्षण समिती : प्रत्येक राज्य के शिक्षा मंत्री भी अपने अपनी विधानसभाओ से प्राप्त हुए वोटो के हिसाब से विधायको को चुनकर इसी तरह की राज्य कमेटी बनायेंगे। यदि किसी रजिस्टर्ड एवं गैर मान्यता प्राप्त पार्टी के प्रत्याशी या निर्दलीय प्रत्याशी ने विधायक के चुनाव में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है तो ऐसे गैर गैर विधायको को भी इस कमेटी में सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा।

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(05) इतिहासकारो की केन्द्रीय सूची : शिक्षा मंत्री ऐसे लोगो की सूची बनाएगा जिन्होंने इतिहास के किसी विषय आदि पर शोध पत्र प्रकाशित किये हो। इस सूची में मानद डॉक्टरेट, पीएचडी, प्रोफेसर, व्याख्याता आदि होंगे, जिनके पास इतिहास के पर्याप्त अध्ययन / अध्यापन की प्रमाणिकता है। इस सूची में ऐसे व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाएगा जिसने इतिहास में सिर्फ स्नातकोत्तर किया है, एवं उसके पास अन्य कोई अर्हता नहीं है। शिक्षा मंत्री इसके लिए चिन्हित की जा सकने वाली पात्रता निर्धारित करेंगे।

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(5.1) ऐसे लोगो की सूची देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, ऐतिहासिक शोध संस्थानों, पुरातात्विक संस्थानों आदि से मांगी जा सकती है।

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(5.2) यदि किसी व्यक्ति का नाम इस सूची में शामिल होने से रह गया है तो वह जिला कलेक्टर कार्यालय में अपने प्रमाण पत्रों के साथ आवेदन कर सकता है। यदि दावा प्रमाणिक पाया जाता है तो उसका नाम जोड़ दिया जाएगा।

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(5.3) यदि कोई व्यक्ति अपना नाम इस सूची से हटाना चाहता है तो वह इसके लिए आवेदन कर सकेगा। यह इतिहासकारों की कमेटी नहीं है, बल्कि सूची है।

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(06) इतिहासकारो की राज्य सूची : इसी तरह के इतिहासकारों की एक सूची राज्य स्तर पर भी बनाई जायेगी। इस तरह प्रत्येक राज्य मंउ भी इतिहासकारों की एक सूची रहेगी। किसी व्यक्ति का नाम इतिहासकारों की दोनों सूचियों (राज्य एंव केंद्र) में हो सकता है।

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[ टिप्पणी : सैक्शन A के बारे में स्पष्टीकरण

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6a. जितना भी इतिहास लिखा जाता है, वह सरकारों एवं उनके प्रयोजको के दृष्टिकोण को व्यक्त करता है। इस समस्या से बचने के लिए शिक्षा मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में किया गया है। यदि शिक्षा मंत्री इतिहास को अपनी पार्टी के एजेंडे के दृष्टिकोण से लिखता है तो नागरिक वोट वापसी पासबुक का प्रयोग करके उसे निष्काषित कर सकेंगे। पाठ्यक्रम पुनरीक्षण कमेटी का अध्यक्ष वोट वापसी पासबुक के दायरे नहीं आएगा किन्तु यह कमेटी एवं इसके सदस्य जूरी के दायरे में होंगे। (धारा 1)

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6b. 5 वर्ष के लिए चुनी गयी किसी सरकार को यह निर्णायक अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वे इतिहास का दृष्टिकोण तय करें। इसीलिए सरकार पुनरीक्षण संसदीय समिती का गठन वोटो के प्रतिशत के आधार पर किया गया है। साथ ही उन लोगो को प्रतिनिधित्व दिया गया है, जो एक बड़ी संख्या के मतदाता वर्ग का प्रतिनिधत्व करते है, किन्तु मामूली अंतर के कारण संसद में नहीं पहुंचे। (धारा 3) ]

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सैक्शन – B

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पुनरीक्षण की प्रक्रिया :

[ टिप्पणी 7a : इतिहास के पुनरीक्षण का पैमाना बहु आयामी एवं काफी विस्तृत हो सकता है। इसमें कक्षा 5 से स्नातकोतर की पाठ्यपुस्तकें शामिल है। यहाँ इतिहास के पुनरीक्षण की प्रक्रिया का प्रारूप दिया गया है, पुनर्लेखन का नहीं। पुनर्लेखन की प्रक्रिया कई सालों तक चल सकती है, और इसमें काफी संसाधन लगेंगे। अत: हमारे विचार में हमें पहले चरण में पुनरीक्षण करना चाहिए। और पुनरीक्षण के बाद सरकार चाहे तो पुनर्लेखन की प्रक्रिया के आदेश भी जारी कर सकती है। ]

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(07) पुनरीक्षण के प्रारूप को स्वीकृत करना : पुनरीक्षण कमेटी का अध्यक्ष पुनरीक्षण का प्रारूप तय करेगा। यह प्रारूप बहुमत द्वारा पास करके संसदीय समिति को भेजा जाएगा।

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(7.1) पुनरीक्षण के लिए प्रस्तावित प्रारूप :

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7.1.1. पुस्तको के नाम में कोई बदलाव नहीं किये जायेंगे।

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7.1.2. जहाँ तक हो सके, अध्यायों के नामों में भी बदलाव नहीं किया जाएगा, जब तक कि, अध्याय में इतना बड़ा बदलाव न आ गया हो कि अध्याय का नाम संदर्भ से कट न जाए।

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7.1.3. किसी भी पुस्तक की पृष्ठ संख्या में 10% से अधिक बदलाव नहीं किया जाएगा।

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7.1.4. किसी भी पुस्तक के पाठ्यक्रम के विषय में 25% से अधिक बुनियादी* बदलाव नहीं किया जायेगा। (अध्यक्ष चाहे तो इस सीमा को बढ़ाकर 40% तक कर सकता है)

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(*) स्पष्टीकरण : विषय एवं बुनियादी बदलाव से आशय : किसी अध्याय को पूरी तरह से हटा देना बुनियादी बदलाव की श्रेणी में आएगा। मान लीजिये कि, स्वतंत्रता आन्दोलन के किसी अध्याय में असहयोग आन्दोलन का बिंदु है, और इस बिंदु के अंतर्गत 10 पंक्तियाँ लिखी है। अब यदि असहयोग आन्दोलन के बिंदु एवं इन सभी 10 पंक्तियों को हटा दिया जाता है तो यह विषय में बुनियादी बदलाव है। किन्तु यदि 10 पंक्तियों में से 6 पंक्तियाँ काट दी जाती है, या इनके विवरण बदल दिए जाते है तो यह बुनियादी बदलाव नहीं है।

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(7.2) ऊपर दिए गए 4 बिंदु अपरिवर्तनीय रहेंगे। किन्तु अध्यक्ष चाहे तो इसमें कुछ अन्य बिंदु भी जोड़ सकते है। किन्तु यह आवश्यक होगा कि जोड़े गए बिंदु उपरोक्त 4 बिन्दुओ का अतिक्रमण एवं उलंघन न करते हो।

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(7.3) जब भी पुनरीक्षण कमेटी कोई प्रस्ताव संसदीय समिती को भेजेगी तो इसे अनिवार्य रूप से सार्वजनिक करेगी। संसदीय समिती को 60 कार्य दिवसो के भीतर इन्हें स्वीकृत या ख़ारिज करना होगा। यदि संसदीय समिती 60 दिनों में कोई जवाब नहीं देती है, तो सभी प्रस्तावों को स्वीकृत मान लिया जाएगा।

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7.3.1. संसदीय समिती जब इसे स्वीकृत करेगी, तब वोटिंग खुली होगी। यह जानकारी सार्वजनिक रहेगी कि, किस सदस्य ने किस बिंदु को स्वीकृत किया है, और किस ने इसे ख़ारिज किया है।

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7.3.2. प्रस्तुत किये गए प्रत्येक बिंदु पर वोटिंग होगी।

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7.3.3. यदि संसदीय समिती इसमें कोई सुझाव जोड़ना चाहती है तो अपना सुझाव जोड़ कर भेज सकती है।

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(7.4) यदि पुनरीक्षण संसदीय समिती द्वारा कोई प्रस्ताव 2 बार ख़ारिज कर दिया जाता है, तो यह ख़ारिज माना जायेगा और लागू नहीं होगा। तब इस प्रस्ताव को लोकसभा एवं राज्यसभा के दोनों सदनों से 2/3 बहुमत द्वारा पास कराना होगा। इन्हें दोनों सदनों से अलग अलग पास किया जाएगा, संयुक्त अधिवेशन द्वारा नहीं। सदन में इसकी वोटिंग खुली होगी और यह जानकरी सार्वजनिक रहेगी कि किस सांसद ने किस प्रस्ताव को स्वीकृत एवं खारिज किया है।

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(7.5) पुनरीक्षण कमेटी एवं पुनरीक्षण संसदीय समिती की मीटिंग्स के मिनिट्स के पीडीऍफ़ शिक्षा मंत्री की वेबसाईट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रहेंगे। यदि कोई व्यक्ति इनकी सत्यापित प्रति प्राप्त करना चाहता है, कर सकता है।

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(08) अध्यायों में बदलाव के लिए भाषा एवं भूमिका का प्रारूप :

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(8.1) पुस्तक की भूमिका : भूमिका में निम्नलिखित बिन्दुओ की समझ बढ़ाने वाले विवरण प्रमुखता से शामिल होंगे कि,

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8.1.1. इतिहास से आशय है - घट चुकी भौतिक घटनाओं के सिलसिले को दर्ज करना, या फैक्ट शीट तैयार करना।

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8.1.2. फैक्ट / तथ्य घटने वाली ऐसी भौतिक घटनाएँ है जिन पर कोई विवाद नहीं है, या न्यूनतम विवाद है।

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8.1.3. घटनाओ के अतिरिक्त शेष विवरण इतिहासकारों की राय है, और यह राय इतिहास का हिस्सा नहीं होती है।

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8.1.4. यह पुस्तक सिर्फ प्रमाणिक इतिहास बताती है, और इस वजह से इतिहासकारों की निजी राय को इसमें दर्ज नहीं किया गया है। विभिन्न इतिहासकारों की राय जानने के लिए कृपया सन्दर्भ पुस्तकें पढ़ें।

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(8.2) पुस्तक की भाषा :

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8.2.1. पुस्तक में धारणा एवं राय बनाने वाले शब्दों का इस्तेमाल किसी भी स्थिती में नहीं किया जाएगा।

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8.2.2. किसी भी घटना एवं व्यक्ति को परिभाषित करने के लिए किसी भी विशेषण का प्रयोग नहीं किया जाएगा।

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8.2.3. यदि कोई क्रांतिकारी गोरो के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुआ था तो उनके आगे ‘महात्मा’ एवं पीछे ‘जी’ लगाया जाएगा।

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[ टिप्पणी 8a : मोहन दास गाँधी के आगे से महात्मा निकाल दिया जाएगा, और उन्हें मोहन दास गांधी या मोहन दास जी गाँधी लिखा जाएगा। इसी तरह से रविन्द्र नाथ के आगे से भी गुरुदेव हटा दिया जाएगा। अकबर एवं अशोक के पीछे से भी महान निकाला जायेगा। हेमचन्द्र विक्रमादित्य को हेमू लिखा गया है। इसे हेमचन्द्र विक्रमादित्य किया जायेगा। भगत सिंह को महात्मा भगत सिंह जी लिखा जाएगा। इसी तरह से महात्मा राजगुरु जी, महात्मा मदन लाल जी धींगरा एवं महात्मा अशफाकुल्ला खान आदि।

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शहीद हुए क्रांतिकारियों के अलावा यदि कमेटी किसी विशिष्ट श्रेणी के क्रन्तिकारी के लिए कोई विशेषण प्रयुक्त करना चाहती है तो इसके लिए अलग से प्रस्ताव लेना होगा। किन्तु ऐसे प्रस्ताव को टीसीपी द्वारा ही लागू किया जा सकेगा, संसद द्वारा नहीं। और यह प्रस्ताव सिर्फ क्रांतिकारी के लिए लिया जा सकेगा। टीसीपी की प्रक्रिया के लिए धारा (14) देखें।

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किसी भी व्यक्ति के चारित्रिक गुणों एवं स्वभाव के बारे में कोई भी राय नहीं लिखी जायेगी। उदाहरण के लिए अमुक राजा कला मर्मग्य था, अमुक वीर था, अमुक दयालु था, क्रूर था, ऐयाश था, सहिष्णु था, धर्मांध था, कायर था, महत्त्वाकांक्षी था, कुशल सेनापति था, रणनीतिकार था, आदि कदापि नहीं लिखा जाएगा। ]

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(09) अध्याय का प्रारूप :

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अध्यायों की भिन्न भिन्न प्रकृति के अनुसार इसके भिन्न प्रारूप बनाने पड़ सकते है। कमेटी का अध्यक्ष इस बारे में विस्तृत नियम बनाएगा। आधारभूत निर्देश के लिए निचे माध्यमिक स्तर की पुस्तक में अकबर के अध्याय का एक प्रारूप दिया गया है :

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(9.1) पहले खंड में अकबर के जीवन काल की घटनाएं होंगी। अध्याय की प्रकृति के अनुसार इसका आकार घटाया या बढ़ाया जा सकेगा। इसका सिलसिला इस तरह से होगा - अकबर का जन्म 1542 ईस्वी में हुआ था। वह 1555 में गद्दी पर बैठा। उसकी मृत्यु 1605 में हुयी, उसने अमुक अमुक लड़ाइयां लड़ी, अमुक लड़ाइयां जीती, अमुक हारी, अमुक धर्म चलाया, अमुक अमुक से शादी की आदि। जब गद्दी पर आया तो कितना साम्राज्य था और जब मरा तो कितना था। इस तरह यह खंड इतिहास की सिलसिलेवार घटनाओ पर चलेगा। बीच में कोई राय नहीं, कोई विश्लेषण नहीं।

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(9.2) अब इसके बाद जब उसके कार्यो के बारे में लिखा जाएगा तो सबसे पहले उसके द्वारा निकाले गए आदेशों ( राजपत्र अधिसूचनाओ ) का जिक्र होगा। और इन आदेशों को हमेशा निचे दिए गए क्रम में ही लिखा जाएगा :

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9.2.1. अदालतें : अकबर के शासन में दंड देने की सर्वोच्च शक्ति किसके पास थी। अकबर ने इसमें बदलाव लाने के लिए कौन कौन से आदेश निकाले, न्याय एवं सुनवाई के लिए व्यवस्था क्या थी आदि। किन्तु वाक्य इस तरह से नहीं लिखा जाएगा कि, अकबर ने न्याय सुधार किये या वह न्याय प्रिय था आदि। सिर्फ इस तथ्य को दर्ज किया जायेगा कि काजियों / न्यायधिशो की नियुक्ति कैसे होती थी, और सुनवाई की प्रक्रिया क्या थी। यदि अकबर ने न्याय प्रणाली के सम्बन्ध में कोई छोटा से छोटा आदेश भी निकाला है, तो इसे अनिवार्य रूप से दर्ज किया जाएगा। किन्तु यह राय यहाँ कभी दर्ज नहीं की जायेगी कि, अमुक आदेश से न्याय व्यवस्था ठीक हुई थी या बदतर हुयी थी।

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9.2.2. सेना : इसके बारे में पूरे विवरण होंगे। वह कितनी बड़ी सेना चला रहा था। उसके पास कौनसे हथियार थे। इन्हे कौन बनाता था। सैनिको का वेतन, जंगी घोड़ो की संख्या, घोड़ो की नस्ल, तलवारो आदि के बारे उल्लेखनीय जानकारियां। सेना का बजट कितना था। उसने कब कब सेना का बजट बढ़ाया था, क्या वह अन्य राजाओ से भी हथियार मंगवाता था, क्या उसने कभी हथियार निर्माण में निवेश किया था आदि।

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9.2.3. पुलिस : ठीक इसी तरह से पुलिस के बारे में लिखा जाएगा। उस समय पुलिस शब्द नहीं था। अत: इतिहासकार इसके समान अर्थ करने वाला कोई अन्य शब्द ढूंढ सकते है। या सीधे पुलिस भी लिख सकते है। पुलिस यानि, क़ानून तोड़ने वालो को पकड़ने वाले कर्मचारी।

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9.2.4. कर प्रणाली : इसके बाद टैक्स की दरों एवं टेक्स के कानूनों के बारे में लिखा जाएगा। जैसे अकबर ने जजिया खत्म किया और इससे उसे लगभग कितना राजस्व मिल रहा था। और इसे कवर करने के लिए उसने कौनसा टेक्स डाला था। और उसने नया टेक्स नहीं डाला तो किन खर्चो में कटौती की थी।

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9.2.5. युद्ध : इसके बाद उसके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में लिखा जायेगा। जब भी किसी युद्ध का विवरण आएगा तो सबसे पहले दोनों सेनाओ की तुलना रखी जायेगी। यदि ज्यादा विवरण डालने है तो तालिका का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें हथियारों का विवरण मुख्य रूप से शामिल किया जायेगा। अमुक के पास कौनसे और कितने हथियार थे, और सामने वाले के पास क्या हथियार थे, इस तथ्य को दर्ज किया जाएगा। किन्तु कौन राजा किस वजह से निरंतर जीत रहा था या हार गया था, इसके बारे में कोई राय व्यक्त नहीं की जायेगी।

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(9.3) समान कालखंड की अन्य सभ्यताओं से तुलना : इस खंड में अकबर के कालखंड के किसी यूरोपीय राजा की तुलना की जायेगी। तुलना के बिंदु सिर्फ 4 ही होंगे। सेना-हथियार, अदालतें, पुलिस एवं टेक्स। इस बारे में संक्षिप्त विवरण लिखा जाएगा कि, उस समय यूरोपीय राजा किन हथियारों का इस्तेमाल कर रहे थे, उनकी अदालत-पुलिस किस तरह से काम करती थी, और टेक्स का ढांचा क्या था। इस बारे में सिर्फ तथ्य रखे जायेंगे। यूरोप की इस तुलना को शामिल करना इसीलिए औचित्यपूर्ण है, क्योंकि जहाँगीर के समय से ही ब्रिटिश-फ्रांसिस भी भारत के इतिहास में जुड़ने लगेंगे। तो छात्रों को अचानक से यह न लगे कि ये सब कहाँ से आ गए है।

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(9.4) समीक्षा : इस खंड में राजा की एवं उपरोक्त घटनाक्रम की समीक्षा होगी। समीक्षा तथ्यों पर आधारित होगी, तुलनात्मक होगी एवं निर्विवाद होगी। इसे इस तरह लिखा जाएगा -- अकबर के पास मुगलों की सबसे बड़ी सेना थी। अकबर ने कुल 18 लड़ाइयाँ लड़ी। इसमें से 2 हारी। इसमें से कितनी लड़ाइयो में स्वयं मौजूद था, उसका साम्राज्य औरंगजेब के बाद सबसे बड़ा था आदि। समीक्षा हमेशा गणनात्मक एवं मात्रात्मक होगी, गुणात्मक नहीं।

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(9.5) इसके बाद अकबर की व्यापारिक / कारोबारी फैसलों के बारे में लिखा जाएगा। इसमें कला, स्थापत्य, संगीत आदि के बारे में होगा। इसमें उन निर्माणों को दर्ज किया जाएगा जो कारोबार से सम्बंधित है, और उत्पादकता बढ़ाते है। आशय यह कि, फतेहपुर सिकरी एवं सड़को को एक ही श्रेणी नहीं रखा जाएगा। पहले उत्पादक निर्माण जैसे, सड़के, पुल, मंडियां, तालाब आदि के बारे में, और बाद वाले खंड में अनुत्पादक निर्माण जैसे मूर्तियाँ, स्तम्भ, महल आदि के बारे में आएगा। यदि यह प्रमाणित है कि शेरशाह की तुलना में अकबर की सड़के टिकाऊ नही थी तो इसे दर्ज किया जाएगा।

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(9.6) शिक्षा मंत्री पुनरीक्षण अध्यक्ष को अध्यायों का इस तरह का खाका बनाने के लिए निर्देश देगा। पुस्तक को इस प्रारूप में लिखा जाएगा और स्वीकृत करने की प्रक्रिया पूरी करने के बाद पुस्तक प्रकाशित कर दी जायेगी। और इसी क्रम में सभी पाठ्यपुस्तकों का इसी प्रारूप में पुनरीक्षण कर दिया जायेगा।

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(10) पुनरीक्षण के प्रस्तावों को स्वीकृत करने की प्रक्रिया :

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(10.1) पुनरीक्षित किये गए अध्याय को कमेटी द्वारा पुनरीक्षण संसदीय समिती को भेजा जाएगा। प्रत्येक अध्याय अलग अलग खंडो में विभाजित होगा। प्रत्येक खंड के लिए वोटिंग की जायेगी, और स्वीकृत प्रस्ताव कमेटी को भेज दिए जायेंगे।

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(10.2) स्वीकृत किये गए प्रस्तावों को इतिहासकारो की जूरी के पास भेजा जाएगा। यदि इन्हें जूरी द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है, तो इन्हें शिक्षा मंत्री इन्हें लागू करने के आदेश जारी करेंगे।

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(11) जूरी का गठन एवं अनुमोदन की प्रक्रिया :

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(11.1) प्रथम महाजूरी मंडल का गठन : पुनरीक्षण कमेटी का अध्यक्ष जूरी के संचालन के लिए एक जूरी प्रशासक की नियुक्ति करेगा। जूरी प्रशासक एक सार्वजनिक बैठक में दिल्ली राज्य की मतदाता सूचियों में से 25 वर्ष से 50 वर्ष की आयु के 50 मतदाताओं का चुनाव लॉटरी द्वारा करेगा। इन सदस्यों का साक्षात्कार लेने के बाद अध्यक्ष किन्ही 20 सदस्यों को निकाल सकता है। इस तरह 30 महाजूरी सदस्य शेष रह जायेंगे।

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(11.2) अनुगामी महाजूरी मंडल : प्रथम महा जूरी मंडल में से जिला जूरी प्रशासक पहले 10 महाजूरी सदस्यों को हर 10 दिन में सेवानिवृत्त करेगा। पहले महीने के बाद प्रत्येक महाजूरी सदस्य का कार्यकाल 3 महीने का होगा, अत: 10 महाजूरी सदस्य हर महीने सेवानिवृत्त होंगे, और 10 नए चुने जाएंगे। नये 10 सदस्य चुनने के लिए जूरी प्रशासक जिला/ राज्य /भारत की मतदाता सूची में से लॉटरी द्वारा 20 सदस्य चुनेगा और साक्षात्कार द्वारा इनमें से किन्ही 10 की छंटनी कर देगा। महाजुरी सदस्यों प्रति उपस्थिति 600 रू एवं यात्रा व्यय प्राप्त करेंगे।

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(11.3) इतिहासकारों की जूरी का गठन : जूरी प्रशासक जूरी के गठन के लिए इतिहासकारों की केन्द्रीय सूची का इस्तेमाल करेगा।

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11.3.1 जूरी का चयन लॉटरी द्वारा किया जाएगा, एवं इसकी बैठक दिल्ली में होगी।

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11.3.2. जूरी का आकार कम से कम 50 सदस्य होगा। महाजूरी मंडल चाहे तो जूरी सदस्यों की संख्या बढ़ा सकता है।

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11.3.3. जूरी सदस्यों को यात्रा व्यय एवं भत्ते वगेरह दूरी के आधार पर मिलेंगे, और इसकी प्राथमिक दरें महा जूरी मंडल जूरी तय करेगा। आवागमन की दरें द्वितीय श्रेणी वातानुकूलित शायिका ( Second Class AC Sleeper ) की दरों के समकक्ष होगी।

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11.3.4. जूरी सदस्यों को आवागमन के लिए सरकारी परिवहन जैसे ट्रेन आदि में आपातकालीन कोटे की आरक्षित सीटो का इस्तेमाल करने की सुविधा रहेगी तथा जब ये जूरी ड्यूटी पर आयेंगे / जायेंगे तो इस कोटे का इस्तेमाल करना इनका प्राथमिक विशेषधिकार होगा। यदि जूरी सदस्य ने फ्लाईट का इस्तेमाल किया है तो उन्हें फ्लाईट की दरों के अनुसार भुगतान किया जाएगा।

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11.3.5. जूरी सदस्य को यात्रा सुविधा के लिए एक अतिरिक्त सहयोगी को साथ लेकर आने के लिए यात्रा व्यय, भत्ते वगेरह के लिए दोगुना भुगतान मिलेगा।

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11.3.6. इतिहासकारों की जूरी के सदस्य को प्रति उपस्थिति 1,000 रू भुगतान किया जाएगा। महाजुरी मंडल चाहे तो इसमे बदलाव कर सकते है।

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(11.4) जूरी द्वारा सुनवाई : सुनवाई के दिन एवं स्थान की घोषणा कम से कम 30 दिन पूर्व कर दी जायेगी, एवं प्रस्तुत किये जाने वाला पाठ्य भी सार्वजनिक रहेगा।

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11.4.1. यदि किसी व्यक्ति / पक्षकार को कुछ कहना है तो वह महाजूरी मंडल को लिखित में अपना प्रतिवेदन भेज सकता है। ये प्रतिवेदन इतिहासकारों की जूरी के समक्ष विचार के लिए रखे जायेंगे।

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11.4.2. यदि कोई पक्षकार जूरी के सामने उपस्थित होकर अपना पक्ष रखना चाहता है, तो वह महाजूरी मंडल की अनुमति से ऐसा कर सकता है।

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11.4.3. सुनवाई सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक चलेगी। मामले की सुनवाई सिर्फ तभी शुरू होगी जब चुने गए समस्त जूरी सदस्यों में से (चुने गए समस्त जूरी सदस्यों में से, ना कि सिर्फ उपस्थित जूरी सदस्यों के) 75% सुनवाई शुरू करने को राजी हों। 2 बजे से 3 बजे के मध्य भोजनावकाश रहेगा ।

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11.4.4. यदि जूरी सदस्य विवाद के किसी बिंदु या विषय पर अन्य जानकार इतिहासकारों की सलाह लेना चाहते है तो सलाह के लिए 3 से 5 नामचीन इतिहासकारों का पैनल बनाने का आदेश कर सकते है।

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11.4.5. सलाहकारी पैनल का गठन महाजूरी मंडल द्वारा लॉटरी से किया जाएगा। पहले महाजूरी मंडल द्वारा इसके लिए सूची बनायी जायेगी और फिर सार्वजनिक रूप से लॉटरी द्वारा सदस्यों को चुना जाएगा।

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11.4.6. यह विशेषग्य पैनल विवादित बिंदु के बारे में अपनी राय लिखित में रखेगा। पैनल का प्रत्येक सदस्य अपनी राय अलग से रखेगा। यदि जूरी सदस्य उन्हें व्यक्तिश: सुनना चाहते है तो उन्हें उपस्थित होने के लिए कह सकते है ।

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(11.5) इतिहासकारों की जूरी द्वारा जो प्रस्ताव 2/3 बहुमत द्वारा अनुमोदित कर दिए जायेंगे, उन्हें शिक्षा मंत्री केन्द्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में लागू करने के आदेश जारी करेंगे।

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(12) राज्यों द्वारा पाठ्यक्रम स्वीकृत करने की प्रक्रिया :

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(12.1) जिस पाठ्यक्रम को केन्द्रीय कमेटी द्वारा स्वीकृत किया जा चुका है, उन्हें राज्यों की पुनरीक्षण समिती एवं राज्यों के जूरी मंडल द्वारा स्वीकृत करके आंशिक या पूर्ण रूप से लागू किया जा सकता है।

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(12.2) राज्य सरकारें अपने स्थानीय पाठ्यक्रम के पुनरीक्षण के लिए इसी प्रक्रिया का पालन करेगी। राज्यों की जूरी का गठन करने के लिए राज्यों के इतिहासकारों की सूची का इस्तेमाल किया जाएगा, तथा जूरी द्वारा सुनवाई राज्य की राजधानी में की जायेगी।

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[ टिप्पणी 12a. राज्य के मुख्यमंत्री चाहे तो अपने राज्य के जिला शिक्षा अधिकारियो को वोट वापसी पासबुक के दायरे लाने के लिए नोटिफिकेशन निकाल सकते है। यदि शिक्षा अधिकारी को वोट वापसी पासबुक के दायरे में कर दिया जाता है, तो राज्य द्वारा स्वीकृत पाठ्यक्रम को जिले में लागू करने का अंतिम फैसला जिला शिक्षा अधिकारी एवं जिला जूरी करेगी। किन्तु केन्द्रीय पाठ्यक्रम में जिला शिक्षा अधिकारी का कोई दखल नहीं करेगा। वोट वापसी पासबुक के दायरे में आने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी निम्नलिखित कदम उठा सकता है :

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12b. शिक्षा अधिकारी अनुत्पादक विषयों जैसे इतिहास, सामाजिक विज्ञान, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र आदि में प्राप्तांक प्रणाली ख़त्म कर सकता है। तब छात्र को उपरोक्त विषयों में सिर्फ पास होना होगा, एवं इन विषयों में अंक नहीं दिए जायेंगे। छात्र को इन विषयों में सिर्फ पास होना होगा, एवं इन विषयों के परिणाम का अंक तालिका पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

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12c. गणित विज्ञान जैसे उत्पादक विषयों की शिक्षा को बेहतर करने के लिए शिक्षा अधिकारी सात्य प्रणाली लागू कर सकता है।

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12d. शिक्षा अधिकारी इतिहास की पुस्तकों को “हथियारो का ऐतिहासिक महत्त्व” के दृष्टिकोण से लिखवा सकता है, या हथियारों का इतिहास एवं विज्ञान नाम से पुस्तक पाठ्यक्रम में शामिल कर सकता है। ]

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(13) शिक्षा मंत्री को वोट वापसी पासबुक के दायरे में लाने की प्रक्रिया :

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(13.1) भारत का कोई भी नागरिक जिसकी आयु 32 वर्ष से अधिक है तो वह जिला कलेक्टर कार्यालय में स्वयं या किसी वकील के माध्यम से शिक्षा मंत्री बनने के लिए शपथपत्र प्रस्तुत कर सकेगा। जिला कलेक्टर सांसद के चुनाव में ली जाने जमानत राशि के बराबर शुल्क लेकर शपथपत्र को स्वीकार करेगा और उसे एक विशिष्ट सीरियल नंबर जारी करेगा। जिला कलेक्टर इस शपथपत्र को स्कैन करके पीएम की वेबसाईट पर रखेगा, ताकि कोई भी मतदाता इसे बिना लोग इन के देख सके ।

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[ टिप्पणी 13a. आवेदन करने वाला व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी या विपक्षी पार्टी का कोई भी सांसद हो सकता है। यदि वह सांसद नहीं है तो उसे बाद में चुनाव जीतना होगा, एवं प्रवृत नियमो के अनुसार मंत्री बनने की अर्हता पूरी करनी होगी।]

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(13.2) कोई भी नागरिक किसी भी दिन अपनी वोट वापसी पासबुक या वोटर आई डी के साथ पटवारी कार्यालय में जाकर किसी भी प्रत्याशी के समर्थन में हाँ दर्ज करवा सकेगा। पटवारी अपने कम्प्यूटर एवं वोट वापसी पासबुक में मतदाता की हाँ दर्ज करेगा। पटवारी मतदाताओं की हाँ को प्रत्याशीयों के नाम व मतदाता की पहचान-पत्र संख्या के साथ जिला वेबसाईट पर भी रखेगा। मतदाता किसी पद के प्रत्याशीयों में से अपनी पसंद के अधिकतम 5 व्यक्तियों को स्वीकृति दे सकता है।

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(13.3) स्वीकृति ( हाँ ) दर्ज करने के लिए मतदाता 3 रूपये फ़ीस देगा। BPL कार्ड धारक के लिए फ़ीस 1 रुपया होगी।

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(13.4) यदि मतदाता सहमती रद्द करवाने आता है तो पटवारी एक या अधिक नामों को बिना कोई फ़ीस लिए रद्द कर देगा

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(13.5) प्रत्येक महीने की 5 तारीख को कलेक्टर पिछले महीने में प्राप्त प्रत्येक प्रत्याशियों को मिली स्वीकृतियों की गिनती प्रकाशित करेगा। पटवारी अपने क्षेत्र की स्वीकृतियों का यह प्रदर्शन प्रत्येक सोमवार को करेगा। केन्द्रीय अधिकारियो की स्वीकृतियों का प्रदर्शन 5 तारीख को कैबिनेट सचिव द्वारा भी किया जाएगा।

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[ टिप्पणी 13B : कलेक्टर ऐसा सिस्टम बना सकते है कि मतदाता अपनी स्वीकृति SMS, ATM, मोबाईल एप से दर्ज करवा सके।

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रेंज वोटिंग - प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के आदेश से कलेक्टर ऐसा सिस्टम बना सकते है कि मतदाता किसी प्रत्याशी को (-)100 से (+)100 के बीच अंक दे सके। यदि मतदाता सिर्फ हाँ दर्ज करता है तो इसे 100 अंको के बराबर माना जाएगा। यदि मतदाता अपनी स्वीकृति दर्ज नही करता तो इसे शून्य अंक माना जाएगा । किन्तु यदि मतदाता अंक देता है तब उसके द्वारा दिए अंक ही मान्य होंगे। रेंज वोटिंग की ये प्रक्रिया स्वीकृति प्रणाली से बेहतर है, और ऐरो की व्यर्थ असम्भाव्यता प्रमेय (Arrow’s Useless Impossibility Theorem) से प्रतिरक्षा प्रदान करती है। ]

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(13.6) यदि किसी उम्मीदवार को देश की मतदाता सूची में दर्ज सभी मतदाताओं की 35% से अधिक स्वीकृतियां प्राप्त हो जाती है, और यदि यह स्वीकृतियां पदासीन शिक्षा मंत्री से 1% अधिक भी है, तो प्रधानमंत्री सबसे अधिक स्वीकृति पाने वाले प्रत्याशी को शिक्षा मंत्री की नौकरी दे भी सकते है और नहीं भी दे सकते है। नियुक्ति के बारे में अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री का ही होगा।

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(14) टीसीपी के प्रावधान :

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(14.1) यदि कोई मतदाता इस कानून की किसी धारा में कोई आंशिक या पूर्ण परिवर्तन चाहता है या किसी मांग, सुझाव, शिकायत आदि के रूप में कोई अर्जी देना चाहता है तो वह कलेक्टर कार्यालय में एक एफिडेविट जमा करवा सकेगा। जिला कलेक्टर 20 रूपए प्रति पृष्ठ की दर से शुल्क लेकर एफिडेविट को मतदाता के वोटर आई.डी नंबर के साथ मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर स्कैन करके रखेगा।

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(14.2) यदि कोई मतदाता धारा (14.1) के तहत प्रस्तुत किसी एफिडेविट पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क देकर अपनी हां / ना दर्ज करवा सकता है। पटवारी इसे दर्ज करेगा और हाँ / ना को मतदाता के वोटर आई.डी. नम्बर के साथ मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

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(14.3) यदि देश की मतदाता सूची में दर्ज कुल मतदाताओ के 35% मतदाता किसी शपथपत्र पर हाँ दर्ज कर देते है, तो प्रधानमंत्री अमुक शपथपत्र पर कार्यवाही करने के लिए आवश्यक कदम उठा सकते है, और नहीं भी उठा सकते है। इस बारे में प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम होगा।

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---क़ानून ड्राफ्ट का समापन--

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मौजूदा पेड पाठ्यपुस्तकों के बारे में कुछ विवरण

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इतिहास की पाठ्य पुस्तकें टीवी एवं अख़बार की तरह ही पेड मीडिया का ही एक अंग है। इनमे झूठ कम एवं चयनात्मक सच ज्यादा लिखा जाता है। और इस चयनात्मक सच का प्रभाव / निष्कर्ष विपरीत होता है। जो आदमी ये पुस्तकें लिखवाने के लिए इतिहासकारों को नियुक्त करता है, वह इतिहासकारों को अपने दृष्टिकोण से अवगत कराता है। और पेड इतिहासकार उस दृष्टिकोण के हिसाब से चयनित हिस्सों को उभारकर लिखते है।

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भारत का इतिहास ब्रिटिश इतिहासकारों के मार्गदर्शन में लिखा गया था, और आज भी इतिहास उन्ही के मार्गदर्शन में लिखा जाता है। भारत की मुख्यधारा की सभी पार्टियाँ जानती है, कि हम छात्रों को एकपक्षीय इतिहास पढ़ा रहे है, किन्तु वे इसे बदलने का साहस नहीं जुटा पाते !!

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वजह – भारत का मीडिया अमेरिकी-ब्रिटिश हथियार निर्माताओ के नियंत्रण में है और भारत की मुख्यधारा की सभी राजनैतिक पार्टियाँ एवं नेता चुनाव जीतने एवं टिके रहने के लिए पेड मीडिया पर बुरी तरह से निर्भर करते है। अत: वे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के खिलाफ नहीं जाना चाहते !!

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धनिक वर्ग नागरिको को हथियार विरोधी एवं शान्ति समर्थक बनाए रखना चाहते है। अत: इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में से हथियारों के महत्त्व की जानकारी को बिलकुल गायब कर दिया जाता है, या 2-4 लाइनों में समेट दिया जाता है। छात्रों के दिमाग में यह बात डालने की कोशिश रहती है कि, युद्ध में रणनीति, शौर्य, साहस, वीरता आदि का बहुत महत्त्व होता है, व जीत हार का निर्णायक फैसला मानवीय गुणों पर निर्भर करता है।

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उदाहरण के लिए आपको इतिहास की किताबों में यह लिखा हुआ नहीं मिलेगा कि, सिकन्दर के पास 18 फुट के भाले थे, उसके घोड़ो पर जीन थी, किलो में घुसने के लिए उनके पास 4 मंजिला मचान थे आदि, और इस वजह से उसकी सेना जीतती जा रही थी। इसकी जगह पर वे लिखेंगे कि सिकंदर साहसी एवं वीर था !! और पेड इतिहासकार इस बात पर खामोश रहेंगे कि जूरी सिस्टम आने के कारण कारखाना मालिको पर राजवर्ग द्वारा होने वाले दमन में कमी आयी और इस वजह से ग्रीक उन्नत हथियारों का निर्माण करने की क्षमता जुटा पाए !! और उन्नत हथियारों के कारण ही सिकंदर पूरी इतना बड़ा युद्ध अभियान चला पाया !!

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और इसी तरह जब ब्रिटिश की बात आएगी तो वे इस तथ्य को मुख्य रूप से दर्ज नहीं करते कि गोरो के पास बंदूके थी, जबकि भारतीय राजाओं के पास बंदूके नहीं थी, और इस वजह से गोरे भारत का अधिग्रहण कर पाए। साथ ही वे इस तथ्य को बेहद सफाई से छिपा लेते है कि, गोरे बेहतर बंदूके इसीलिए बना पा रहे थे क्योंकि उनके पास जूरी सिस्टम था।

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दरअसल, वोट वापसी कानूनों के अलावा जूरी कोर्ट होना सबसे बड़ी वजह रही कि अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देश भारत जैसे देशो से तकनीक के क्षेत्र में आगे, काफी आगे निकल गए। जूरी मंडल ने वहां के छोटे-मझौले कारखाना मालिको की जज-पुलिस-नेताओं के भ्रष्टाचार से रक्षा की और वे तकनिकी रूप से उन्नत विशालकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनियां खड़ी कर पाए !!

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अब इस पूरी जानकारी को छिपाने के लिए पेड इतिहास कार मानवीय गुणों आदि की थ्योरी गढ़ते है। उनका जोर छात्रों के दिमाग में यह बात डालने पर रहता है कि भारतीय राजाओ की हार का मुख्य कारण आपसी फूट एवं गद्दारी थी। वे संगठित नहीं थे, उनमे एकता नहीं थी, वे अपने निहित स्वार्थो में डूबे हुए थे आदि आदि। और युद्ध में बेहतर हथियारों / बन्दूको आदि की भूमिका नगण्य होती है !!

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आपसी फूट एवं गद्दारी आदि को युद्ध का निर्णायक बिंदु बनाना क्यों एक कमजोर तर्क है :

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(i) तथ्य यह है कि ऐसा दुनिया भर के सभी देशो एवं सभी राजवंशो में होता था और आज भी होता है। तो गद्दारी करना, या दल बदल लेना एक सार्वभौमिक वास्तविकता है, और इसे सिर्फ भारतीयों के साथ जोड़कर नहीं देखा जा सकता। दुसरे शब्दों में यह मानवीय स्वभाव है।

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(ii) इसके अलावा, वे यह बात हमेशा छुपा लेते है कि जज प्रणाली बड़े पैमाने पर गद्दारों का उत्पादन करती है। भारत में हमेशा से जज सिस्टम रहा और राजा के पास ही दंड देने की निर्णायक शक्ति होती थी। तो उच्च पदस्थ राजवर्ग अन्याय करके लोगो का शोषण करता था, और इस वजह से कुछ लोगो में राज्य के प्रति रोष पनपता था। फिर जब भी उन्हें मौका मिलता वे राजा एवं उसकी सत्ता को गिराने के लिए पाला बदल लेते थे।

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(iii) दरअसल, वफ़ादारी एवं गद्दारी को न्यायिक प्रक्रियाएं प्रभावित करती है। यदि राजवर्ग न्याय करेगा और किसी का जाया उत्पीड़न नहीं होगा तो राज्य एवं राजा के प्रति वफादारो की संख्या में इजाफा होगा, वर्ना असंतोष बढ़ने से गद्दारों की संख्या बढती जायेगी।

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ब्रिटेन में 12 वीं शताब्दी में ही जूरी सिस्टम आ चुका था, अत: वहां राजवर्ग द्वारा किये जा रहे अन्याय एवं दमन में भारी गिरावट आई। जब नागरिको की जूरी सुनवाई करती है, तो राजा या राजवर्ग के खिलाफ रोष इससे पृथक हो जाता है। गद्दारी या फूट का दूसरी वजह सत्ता हथियाने की महत्त्वकांक्षा वगेरह है, जो कि दुनिया भर में समान रूप से लागू है।

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इतिहास की तरह की राजनीती विज्ञान एवं समाज शास्त्र आदि की पाठयपुस्तकें भी पेड मीडिया का अंग है, और इनमें भी चयनात्मक सच लिखकर छात्रों को भ्रमित किया जाता है। ये पुस्तकें घूमा फिरा कर इस बात को स्थापित करती है कि, भारत के लोग भ्रष्ट है, लोकतंत्र परिपक्व नहीं है, शिक्षित नहीं है, उनकी राजनैतिक संस्कृति घटिया है, उनमे जागरूकता नहीं है आदि आदि, और इस तरह भारत की ज्यादातर समस्याओं की जड़ में खुद भारतीयों की सोच या फितरत है।

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क्यों यह एक बकवास तर्क है -

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पूरी दुनिया में कमोबेश एक जैसे लोग पाए जाते है। किन्तु अलग अलग देशो की क़ानून व्यवस्थाएं वहां के न नागरिको के सार्वजनिक व्यवहार को प्रभावित करती है। राजनैतिक / सामाजिक समस्याओ का निदान क़ानून व्यवस्थाओ में परिवर्तन करके किया जा सकता है। किन्तु पेड मीडियाकर्मी प्रशासनिक प्रक्रियाओ की जानबूझकर अवहेलना करना चाहते है, और इसीलिए ये समस्या का दोष नागरिको के चरित्र पर थाप देते है।

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ये पाठ्यपुस्तकें बताती है कि भारत का आम आदमी बदमिजाज, जातिवादी और एक सांप्रदायिक व्यक्ति है। उसमें राष्ट्रिय चरित्र नहीं है, उसके कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं, और वह यौन रूप कुंठित भी है आदि आदि। शिक्षित लोग ये सब उटपटांग पाठ्यपुस्तकों एवं समाचार पत्र स्तंभों में पढ़ते है, और हमेशा के लिए जनसाधारण-विरोधी हो जाते है।

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पेड मीडिया ने समाचार पत्र के स्तंभों और पाठ्यपुस्तकों द्वारा आज के शिक्षित युवा के दिमाग में इतना जहर भर दिया है, कि अब एक औसत शिक्षित व्यक्ति भी जनसाधारण-विरोधी हो गया है। जितनी अधिक शिक्षा उसके पास है, उतनी अधिक संभावनाएं हैं कि वो उतना अधिक समय उन्हें पढने में लगाता है जो रद्दी ये बुद्धिजीवी लिखते हैं, और उतनी ही अधिक संभावनाएं हैं कि वो ज्यादा जनसाधारण विरोधी बन जायेगा।

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शिक्षा व्यक्ति को जनसाधारण से नफरत नहीं सिखाती। लेकिन पेड मीडिया के माध्यम से वे विद्यार्थियों के मन में जनसाधारण-विरोधी दृष्टिकोण पैदा कर रहे हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि विद्यार्थी लोकतांत्रिक सोच के बनें। असल में वे विद्यार्थियों को अल्पजन-तंत्र (बुद्धिमानों का शासन) का समर्थक बनाना चाहते है।

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भारत में लगातार कुछ राजनैतिक पार्टियों, नेताओ द्वारा इतिहास के पुनरीक्षण की मांग एवं वादा किया जाता रहा है। हालांकि आज तक किसी भी राजनैतिक दल एवं नेता ने इस बारे में कोई खाका नहीं दिया है कि, वे इतिहास की पाठयपुस्तको को औचित्यपूर्ण बनाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाएंगे।

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उनकी रुचि सिर्फ इस बात का प्रचार करने में रहती है कि, भारत की पाठयपुस्तको में लिखा इतिहास झूठा है !! प्रधानमंत्री के पास यह शक्ति है कि वे किसी भी समय सिर्फ एक नोटिफिकेशन निकालकर नयी पाठ्यपुस्तक कमेटीयों का गठन कर सकते है।

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बहरहाल, यदि यह प्रक्रिया यदि गेजेट में छाप दी जाती है, इतिहास की पाठयपुस्तको में सुधार आना शुरू हो जाएगा।

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इस क़ानून को गेजेट में प्रकाशित करवाने के लिए आप क्या सहयोग कर सकते है ?

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1. कृपया " प्रधानमंत्री कार्यालय , दिल्ली " के पते पर पोस्टकार्ड लिखकर इस क़ानून की मांग करें। पोस्टकार्ड में यह लिखे : “ प्रधानमंत्री जी, कृपया इतिहास के पुनरीक्षण का क़ानून गेजेट में छापे - #HistoryRevised , #Rrp26 ,

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2. ऊपर दी गयी इबारत उसी तरफ लिखे जिस तरफ पता लिखा जाता है। पोस्टकार्ड भेजने से पहले पोस्टकार्ड की एक फोटो कॉपी करवा ले। यदि आपको पोस्टकार्ड नहीं मिल रहा है तो अंतर्देशीय पत्र ( inland letter ) भी भेज सकते है।

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3. "प्रधानमन्त्री जी से मेरी मांग" नाम से एक रजिस्टर बनाएं। लेटर बॉक्स में डालने से पहले पोस्टकार्ड की जो फोटो कॉपी आपने करवाई है उसे अपने रजिस्टर के पन्ने पर चिपका देवें। फिर जब भी आप पीएम को किसी मांग की चिट्ठी भेजें तब इसकी फोटो कॉपी रजिस्टर के पन्नो पर चिपकाते रहे। इस तरह आपके पास भेजी गयी चिट्ठियों का रिकॉर्ड रहेगा।

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4. आप किसी भी दिन यह चिट्ठी भेज सकते है। किन्तु इस क़ानून ड्राफ्ट के लेखको का मानना है कि सभी नागरिको को यह चिठ्ठी महीने की एक निश्चित तारीख को और एक तय वक्त पर ही भेजनी चाहिए।

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तय तारीख व तय वक्त पर ही क्यों ?

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4.1. यदि चिट्ठियां एक ही दिन भेजी जाती है तो इसका ज्यादा प्रभाव होगा, और प्रधानमंत्री कार्यालय को इन्हें गिनने में भी आसानी होगी। चूंकि नागरिक कर्तव्य दिवस 5 तारीख को पड़ता है अत: पूरे देश में सभी शहरो के लिए चिट्ठी भेजने के लिए महीने की 5 तारीख तय की गयी है। तो यदि आप Pm को ये चिट्ठी भेजते है तो सिर्फ 5 तारीख को ही भेजें।

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4.2. शाम 5 बजे इसलिए ताकि पोस्ट ऑफिस के स्टाफ को इससे अतिरिक्त परेशानी न हो। अमूमन 3 से 5 बजे के बीच लेटर बॉक्स खाली कर लिए जाते है, अब मान लीजिये यदि किसी शहर से 100-200 नागरिक चिट्ठी डालते है तो उन्हें लेटर बॉक्स खाली मिलेगा, वर्ना भरे हुए लेटर बॉक्स में इतनी चिट्ठियां आ नहीं पाएगी जिससे पोस्ट ऑफिस व नागरिको को असुविधा होगी। और इसके बाद पोस्ट मेन 6 बजे पोस्ट बॉक्स खाली कर सकता है, क्योंकि जल्दी ही वे जान जायेंगे कि पीएम को निर्देश भेजने वाले नागरिक 5-6 के बीच ही चिट्ठियां डालते है। इससे उन्हें इनकी छंटनी करने में अपना अतिरिक्त वक्त नहीं लगाना पड़ेगा। अत: यदि आप यह चिट्ठी भेजते है तो कृपया 5 बजे से 6 बजे के बीच ही लेटर बॉक्स में डाले। यदि आप 5 तारीख को चिट्ठी नहीं भेज पाते है तो फिर अगले महीने की 5 तारीख को भेजे।

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4.3. आप यह चिट्ठी किसी भी लेटर बॉक्स में डाल सकते है, किन्तु हमारे विचार में यथा संभव इसे शहर या कस्बे के हेड पोस्ट ऑफिस के बॉक्स में ही डाला जाना चाहिए । वजह यह है कि, हेड पोस्ट ऑफिस का लेटर बॉक्स अपेक्षाकृत बड़े आकार का होता है, और वहां से पोस्टमेन को चिट्ठियाँ निकालकर ले जाने में ज्यादा दूरी भी तय नहीं करनी पड़ती ।

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5. यदि आप फेसबुक पर है तो प्रधानमंत्री जी से मेरी मांग नाम से एक एल्बम बनाकर रजिस्टर पर चिपकाए गए पेज की फोटो इस एल्बम में रखें। यदि आप ट्विटर पर है तो प्रधानमंत्री जी को रजिस्टर के पेज की फोटो के साथ यह ट्विट करें : " @Pmoindia , कृपया यह क़ानून गेजेट में छापें - #HistoryRevised , #Rrp26

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6. Pm को चिट्ठी भेजने वाले नागरिक यदि आपसी संवाद के लिए कोई मीटिंग वगेरह करना चाहते है तो वे स्थानीय स्तर पर महीने के दुसरे रविवार यानी सेकेण्ड सन्डे को सांय 4 बजे मीटिंग कर सकते है। मीटिंग हमेशा सार्वजनिक स्थल पर रखी जानी चाहिए। इसके लिए आप कोई मंदिर या रेलवे-बस स्टेशन के परिसर आदि चुन सकते है। 2nd Sunday के अतिरिक्त अन्य दिनों में कार्यकर्ता निजी स्थलों पर मीटिंग वगेरह रख सकते है, किन्तु महीने के द्वितीय रविवार की मीटिंग सार्वजनिक स्थल पर ही होगी। इस सार्वजनिक मीटिंग का समय भी अपरिवर्तनीय रहेगा।

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7. "अहिंसा मूर्ती महात्मा उधम सिंह जी" से प्रेरित यह एक विकेन्द्रित जन आन्दोलन है। (14) धाराओं का यह ड्राफ्ट ही इस आन्दोलन का नेता है। यदि आप भी यह मांग आगे बढ़ाना चाहते है तो अपने स्तर पर जो भी आप कर सकते है करें। यह कॉपी लेफ्ट प्रपत्र है, और आप इस बुकलेट को अपने स्तर पर छपवाकर नागरिको में बाँट सकते है। इस आन्दोलन के कार्यकर्ता धरने, प्रदर्शन, जाम, मजमे, जुलूस जैसे उन कदमों से बहुधा परहेज करते है जिससे नागरिको को परेशानी होकर समय-श्रम-धन की हानि होती हो। अपनी मांग को स्पष्ट रूप से लिखकर चिट्ठी भेजने से नागरिक अपनी कोई भी मांग Pm तक पहुंचा सकते है। इसके लिए नागरिको को न तो किसी नेता की जरूरत है और न ही मीडिया की।

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